दिल्ली का किस्सा.....
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एक दिन मैं दिल्ली पहुँचा, स्टेशन पे एक कुली से बहार जाने का रास्ता पूंछा. कुली ने कहा बाहर जाके पूछो. मैंने ख़ुद ही रास्ता दूंढ लिया, बाहर जाके टैक्सी वाले से पूंछा , "भाई साब पालम का कितना लोगे ?" जवाब मिला , "बेचना नही है .." टैक्सी छोड़ , मैंने बस पकड़ ली , कंडक्टर से पूंछा , "जी .. क्या में सिगरेट पी सकता हूँ ?" वो गुर्रा कर बोला , "हरगिज़ नही , यहाँ सिगरेट पीना मन है " मैंने कहा , "पर वो जनाब तो पी रहे है !"
फिर से गुर्राया , "उसने मुझसे पूंछा नही है " पालम पंहुचा , होटल गया . मेनेजर से कहा , "मुझे रूम चाहिए , सातवे मंजिल पे " मेनेजर ने कहा , "रहने के लिए या कूदने के लिए ?" रूम पंहुचा , वेटर से कहा , "एक पानी का गिलास मिलेगा ."
उसने जवाब दिया , "नही साहब , यहाँ तो सारे कांच के मिलते है ." होटल से निकला दोस्त के घर जाने के लिए , रस्ते में एक साहब से पूंछा , "जनाब , ये सड़क कहा को जाती है ?" जनाब हंस कर बोले , "पिछले बीस साल से देख रहन हूँ , यही पड़ी है ...."
दोस्त के घर पंहुचा , तो मुझे देखते ही चोंक पड़ा उसने पुछा , "दिल्ली कैसे आना हुआ ?" अब तक तो मुझे भी आदत पड़ गई थी , तो मैंने भी जवाब दिया ,"ट्रेन से .." मेरी आवभगत
करने के लिए दोस्त ने अपनी बीवी से कहा ,"अरे सुनती हो ... मेरा दोस्त पहली बार घर आया है , उसे कुछ तजा तजा खिलाओ .." सुनते ही भाभीजी ने घर की साडी खिड़किया और दरवाजे खोल दिए . कहा , "ताजी हवा खा लीजिये ." दोस्त ने फिर से बड़ी प्यार से बीवी से कहा , "अरे सुनती हो ...इन्हे जरा अपना चालीस साल पुराना आचार तो दिखाना ." भाभीजी एक बाटली मे रखा आचार ले आई , मैंने भी अपनापन दिखाते हुए भाभीजी से कहा , "भाभीजी , आचार सिर्फ़ दिखाएंगी , चाखायेंगी नही ....?" भाभीजी ने टका जवाब दिया , "युही अगर सब को चखाती तो आचार चालीस साल पुराना कैसे होता ..?" थोडी देर बाद देखा , भाभीजी अपने पोते को सूला रही थी , साथ में लोरी भी गा रही थी , "डिप्लोमा सो जा , डिप्लोमा सो जा ." लोरी सून में हैरान हुआ और दोस्त से पुछा , "यार ये डिप्लोमा क्या है ?" दोस्त ने जवाब दिया , "मेरे पोते का नाम , बेटी बम्बई गई थी , डिप्लोमा लेने के लिए और साथ में इसे ले आई , इसीलिए हमने इसका नाम डिप्लोमा रख दिया ." फिर मैंने पूंछा , "आजकल तुम्हारी बेटी क्या कर रही है ?" दोस्त ने जवाब दिया , "बम्बई गई है , डिग्री लेने के लिए ...."
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